Saturday, 25 September 2010
एक लड़की की कहानी एपिसोड- 9
माँ यह सोच ही रही थी की कही माता जी ने मेरा चेकअप तो नहीं करा दिया इतने में हम घर पहुच गए और दादी ने रिक्शेवाले से कहा की भैया रिक्शा जरा दरवाजे पर लगा दे ताकि मेरी बहु आसानी से उतर सके, दादी के मन में माँ के लिए इतनी चिंता और प्यार देख कर लगता तो बहुत अच्छा था लेकिन यह सोच कर दुःख भी लगता था की सच का पता चलने पर दादी माँ के साथ न जाने कैसा बर्ताव करेगी, दादी ने माँ को रिक्शे से उतरने में मदद की और घर के भीतर ले जा कर माँ को उनके पलंग पर लिटा आई, और तब बाहर जाकर रिक्शेवाले को पैसे दिए, और रिक्शेवाले को सफाई देते हुए कहा की भैया जरा माफ़ करना तुम्हे इन्तजार करना पड़ा वो जरा बहु को इतनी देर खड़ी रखकर तुम्हे पैसे देती तो कही वो दुबारा बेहोश न हो जाती, बहुत कम्जूर हो गयी है न इसलिए। रिक्शेवाले ने बड़ी उदारता से कहा कोई बात नहीं माताजी, माँ को होश आ चुका था लेकिन माँ जान बुझ कर अपनी आँखों को बंद किये लेटी थी की कही चेकअप में असलियत न आ गयी हो, लेकिन माँ को क्या पता की माँ का चेकअप हुआ ही नहीं, दादी माँ से कुछ बात करती की देखा की बहु की आँखे बंद है लगता है आराम कर रही है सो बिना जगाय ही अपने कमरे में चली गयी। दादी के कमरे से बाहर जाते ही माँ ने धीरे धीरे अपनी आँखे खोली और भगवान् से बात करने लगी, "हे भगवान् यह तुने क्या किया, मैं जिस बात को छुपा रही थी आज वह बात माताजी के सामने इस तरह से सामने आ गयी, उन्हें कितनी तकलीफ हुई होगी, अब मैं क्या करू? " फिर अचानक माँ ने सोचा की अगर माताजी ने चेकअप करवाया होता तो माता जी कुछ तो कहती लेकिन उन्होंने अभी तक कुछ भी क्यों नहीं कहा? कही वह बहुत ज्यादा गुस्से में तो नहीं है? कही शाम को अपने बेटे के सामने तो सारी बात नहीं करना चाहती? माँ यह सोचती रही और अन्दर ही अन्दर रात को होने वाले कलेश की पूर्व कल्पना करती रही, और भगवान् से कामना करती रही की भगवान् सब आपके ही हाथ में है, कृपा सब ठीक रखना। देखते ही देखते आँगन से धुप सिमटी गयी और संध्या बिखरती जा रही थी, दादी को लगा की दोपहर से बिना कुछ खाय पिए मेरी बहु ऐसे ही पड़ी हुई है चलूं देखूं उसकी तबियत कैसी है? दादी माँ के पास आई और सिराहने बैठ गयी और माथे पर हाथ फेरते हुए बोली अब कैसे तबियत है तेरी? माँ ने धीरे से कहा अब ठीक है माताजी । दादी ने कहा की बेटी अब तू बस आराम कर और सब भूल जा तू बहुत कमजोर हो गयी है इसीलिए बार बार चक्कर आ रहा है। तू बता की तेरे लिए कुछ खाने को बना लाऊ? तुने दोपहर से कुछ नहीं खाया, माँ ने कहा की नहीं माँ अभी कुछ खाने का मन नहीं कर रहा, दादी ने कहा की मैं जानती हूँ की ऐसे में कुछ भी खाने पिने को मन नहीं करता लेकिन फिर भी मन मार कर खाना ही पड़ता है । तू अपने साथ साथ होने वाले बच्चे को भूखा क्यों मार रही है? इसलिए तू आराम कर मैं कुछ लाती हूँ, यह बोल कर दादी रसोई में गयी और माँ के लिए दूध और साथ में कुछ बिस्कुट ले आई और माँ को कहा की अब तू बिना मुह बनाय इसे ख़तम कर। माँ ने हाथ में जैसे ही गिलास लिया इतने में दादी के मुह से एक ऐसी बात निकली जिसे सुनकर मेरी और माँ दोनों की धड़कन ही रुक गयी....शेष अगले अंक में....
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कृपया इसे जारी रखे.....
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