Monday 1 February 2010

एक लड़की कि कहानी, (एपिसोड -6)

माँ बेहोश हो कर गिर पड़ी, दादी को माँ के गिरने के बारे में नहीं पता था, दादी कमरे में बैठी माँ के आने का इन्तजार कर रही थी कि कब माँ आये और कब माँ और दादी एक साथ बैठ कर खाना खाय। मेरी माँ बेहोश पड़ी थी और मैं कुछ नहीं कर पा रही थी, मैं सोच रही थी कि भगवान् दादी को कमरे से बहार भेज दो ताकि वो माँ को बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ देख लें, इतने में दादी बडबडाती हुई कमरे से निकली, दादी बड़े गुस्से में बाहर आ रही थी शायद माँ को डाटने के लिए लेकिन जैसे ही उनकी नजर आंगन में पड़ी तो देखा कि उनकी बहु बेहोश पड़ी हुई है, दादी चिल्लाते हुए माँ की ओर दोडी, दादी को इतना परेशान देख कर मुझे यह अहसास तो हो गया कि दादी माँ से बहुत प्यार करती है। दादी
ने माँ को आवाज लगाकर , बारबार लक्लाककर उठाने की कोशिश की , लेकिन माँ होश में नहीं आई , फिर दादी भीतर से लोटे में पानी लेकर आई और माँ के मुंह पर पानी के कुछ छीटे मारे और माँ के मुंह में चम्मच से पानी डाला तो, माँ ने धीरे धीरे अपनी आँखें खोली, दादी ने बड़ी हडबडाहट में माँ से पूछा क्या हो गया था तुझे, अचानक से चक्कर कैसे आ गए, क्या सुबह से तू खाली पेट है? माँ ने धीरे से हां करते हुए सिर हिलाया, दादी ने माँ को डाटते हुए कहा अरे पगली ऐसी हालत में भूखे नहीं रहते , तू अब अकेली नहीं तेरे साथ एक और जान है, इसलिए अब तुझे अपने और इसके दोनों के बदले खाना है, चल-चल जल्दी उठ मैं तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूँ, दादी माँ को यह सब सुनाते सुनाते माँ को कमरे में ले आई और माँ को आराम करने को कह कर खुद रसोई में चली गयी, माँ लेटे-लेटे अब भी यही सोच रही थी कि वो दादी को सारी बात कैसे बताये। दादी का इतना प्यार देख कर तो मेरा मन भी दुखी हो रहा था, कि मैं लड़की क्यों हूँ, माँ ने सोचा कि माँ इस बात को दादी को बता कर दादी को बहुत बड़ा दुःख देने वाली है, आने वाले भविष्य के चक्कर में माँ दादी से उनकी अभी की ख़ुशी को भी छीन लेंगी, माँ यह सब सोच ही रही थी कि इतने में दादी माँ के लिए खूब बड़ा दूध का गिलास भर कर ले आई और साथ में कुछ मेवा , और ला कर माँ के आगे रख कर बैठ गयी और कहा की चल मेरे सामने यह सब बैठ कर ख़तम कर, मुझे पता है, तू अकेले में कुछ नहीं खाती है, दादी ने अपने हाथ से माँ को दूध का गिलास दिया और माँ को बड़े प्यार से दूध पीने को कहा, माँ जितने दूध पी रही थी, उतना दादी थी की लगातार बोले ही जा रही, थी, और उनकी बातों से साफ़ लग रहा था कि दादी माँ के बेहोश हो जाने को लेकर बहुत चिंतित है, दादी ने माँ से पूछा , बेटी तुझे कही चोट तो नहीं आई, एक पल को लगा की दादी ने यह बात माँ से नहीं बल्कि मुझसे पूछी है, इसलिए मेरे मुंह से एक दम से निकला की नहीं दादी, लेकिन सच तो यह था कि दादी ने माँ से उनकी चोट के लिए पूछा था, माँ ने भी मना किया लेकिन दादी को विश्वास नहीं हुआ, सो दादी ने कहा कि ऐसा कर तू जल्दी से तैयार हो, एक बार डोक्टर के चले चलते है, वरना मुझे जाते जाते चिंता रहेगी, कही तेरे बच्चे को अन्दर चोट न लग गयी हो, इसलिए तू बस चल, माँ भी दादी के कहने पर मान गयी और चलने को तैयार हो गयी, दादी ने खाना भी नहीं खाया और घर को ताला लगा कर डोक्टर की दुकान पर पहुँच गयी, दादी माँ को काफी बड़े अस्पताल में लाइ थी वंहा बहुत सारी गर्भवती महिलायें इधर से उधर घूम रही थीं, दादी ने माँ को एक जगह बेंच पर बिठा दिया और कहा की तू यंही बैठ मैं अभी आई, दादी ने एक काउंटर पर बैठे आदमी से कहा कि यहाँ सबसे बड़ी लेडी डोक्टर कोन है, उस आदमी ने कहा कि आप कमरा नंबर १६ में चली जाइए, दादी माँ को ले आई, दादी और माँ दोनों १६ नम्बर कमरे के सामने आ कर बैठ गए, काफी लम्बी लाइन लगी थी, मेरी माँ का नम्बर सबसे आखिरी में था, माँ के नंबर से पहले जिसका नम्बर था वो भी सास बहु की तरह ही लग रहे थे। दादी ने बराबर में बैठी महिला से कहा की आप किसके साथ आई है, आपकी बहु है, उस महिला ने कहा की नहीं-नहीं यह मेरी बेटी है, और माँ बनने वाली है, अभी मायके रहने आई है, इसलिए सोचा कि एक बार यह पता कर लूँ की पेट में लड़का है या लड़की, यह सुनते तो माँ और मैं दोनों ही घबरा गए कि कहीं ...............

1 comment:

  1. आपकी कहानी बहुत रोमांचक लग रही है. कहानी लिखने का अंदाज बहुत रोचक है.....

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