Wednesday 27 January 2010
एक लड़की की कहानी (एपिसोड - 5 )
माँ ने देखा कि दादी अपने संदूक को खोल कर बैठी हुई थी और कुछ-कुछ सामान अलग से निकाल कर रख रही थी, माँ को देख कर दादी ने कहा कि खाना रख दे पहले इधर आ। दादी कि आवाज में बहुत ख़ुशी और उत्सुकता झलक रही थी, माँ ने खाना रख दिया और माँ धीरे धीरे दादी की ओर चलने लगी, दादी ने बड़े ही गुदगुदाते हुए कहा कि देख यह सारा सामान मेरे पोते के लिए है जो मैंने न जाने कब से रखे हुए थे, आखिर आज वो दिन आ ही गया जब मैं इन्हें निकाल रही हूँ, यह बोलते बोलते दादी कि आँखों में ना जाने क्यों आंसूं भर आये, शायद वो ख़ुशी के आंसू थे , दादी अपनी ख़ुशी बयान नहीं कर पा रही थी। दादी ने माँ से कहा देख-देख यह तेरे पति के वोह कपडे है जो उसने अपनी छटी पर पहने थे, मैं चाहती हूँ कि मेरा पोता इस दुनिया में आने के बाद सबसे पहले यह कपडे ही पहने, अब तू यह मत सोचने लगियो कि कैसी दादी है जो अपने पोते के लिए इतने साल पुराने कपडे दे रही है, अरे पगली हाल ही के पैदा हुए बच्चे क़ी खाल बहुत नाजुक होती है और नए कपडे से उसकी नाजुक खाल को नुक्सान पहुंचेगा, इसलिए ५-६ दिन के बालक को पुराने कपडे ही पहनाना , और देख मैंने अपने पोते के लिए सोने की चेन , यह देख हाथ और पैरो के छोटे छोटे खडुए, देख-देख उसकी कमर क़ी कन्होनी , नजर से बचाने के लिए हाय । दादी ने न जाने कब से यह सब सामान जोड़ रखा था, जिसे दिखा दिखा दादी बहुत खुश हो रही थी, माँ भी कहीं न कहीं खुश तो थी यह सोच कर कि दादी को अपने पोते के आने की कितनी ख़ुशी है, काश उनकी यह ख़ुशी पूरी हो जाए, लेकीन माँ इस बात के लिए ज्यादा डर रही थी कि दादी सच का सामना कैसे कर पाएंगी, लेकिन दादी का सारा सामान देख कर मुझे बहुत ज्यादा दुःख हुआ, क्या दादी ने मेरे लिए एक छोटा सा खिलौना भी नहीं ख़रीदा, क्या दादी मुझसे इतनी नफरत करती है, मैं माँ के पेट में ही रो रो कर कराह रही थी, खुल कर इसलिए नहीं रो रही थी कि कहीं मेरी माँ को मेरे रोने का पता न चल जाए, लेकिन माँ तो माँ होती है न, उनसे भला बच्चे कैसे कोई बात छुपा सकते है, माँ ने दादी की बात बीच में ही काट कर कहा कि माताजी खाना बिलकुल ठंडा हो जाएगा, इसलिए पहले खाना खा लीजिये, दादी ने माँ से कहा कि हा हा ठीक है, तू पहले यह सामान अपने बक्से में जाकर रख दे, माँ ने कहा कि हा ठीक है और माँ सामान लेकर अपने बक्से में जाकर रख आई, माँ अन्दर ही अन्दर सोच रही थी कि क्यों न माताजी को मैं अपने मन की बात बता दूँ? यह सोच कर माँ ने फैसला लिया कि माँ दादी को अपने मन की सारी बात बता देंगी, क्यूंकि माँ नहीं चाहती थी कि दादी को बाद में कोई सदमा लगे, माँ यह सोचते सोचते दादी के कमरे कि ओर जा ही रही थी कि अचानक से माँ ..........(शेष अगले एपिसोड में )
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बहुत अच्छा लिख रही हैं आप....कृपया शब्दों की शुद्धता पर ध्यान दें और एक लड़की की कहानी की कड़ी को कम दिनों में दें ...उम्मीद है की आप आगे भी ये कड़ी जारी रखेंगी.
ReplyDeleteaap ki kahani ka intezaar rahata hai..
ReplyDeletebahut achcha..