Saturday 16 January 2010

एक लड़की की कहानी एपिसोड -५


पिताजी के सुनो कहते ही माँ एक दम सन्न हो कर पिताजी कि और देखने लगीं , पिताजी अभी कुछ बोले भी न थे कि माँ कि आँखों में आंसूं भर आये , मानो माँ को पहले ही पिताजी के जवाब का अहसास हो गया हो, माँ कि आँखों में आंसूं देखकर मैं समझ गयी कि पिताजी का जवाब क्या होगा? का उत्तर पहले ही , एक आदमी को उसकी जड़ से पहचानने कि ताकत शायद एक स्त्री के अलावा किसी और में नहीं है । माँ में बड़ी भरी हुई आवाज में पिताजी से कहा कि मैं आपके जवाब का इन्तजार कर रही हूँ, पिताजी माँ से बोले कि देखो जहा तक मेरी बात है मुझे तो पिता बनाकर ही तुमने मेरी साड़ी इच्छाए पूरी कर दी है और मुझे इस बात से कोई फर्क भी नहीं पड़ता कि तुम्हारी कोख से लड़की जन्म ले या लकड़ा, मेरे लिए तो दोनों का ही सामान महत्त्व है, क्यूंकि दोनों में ही मेरा अंश होगा, हाँ माँ के लिए तो हमे सोचना हो होगा, वो तो बेचारी अपने पोते का मुंह देखने के लिए ही जिन्दा है, उसे बुदापे में हम इससे ज्यादा बड़ी ख़ुशी और दे भी क्या सकतें है, इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी माँ को पोता ही दो। यह सुनकर तो मानो मेरी माँ कि सांस ही थम गयी हो, वह इतनी परेशान हो गयी थी कि पिताजी के आवाज लगाने पर वह नहीं सुन रही थी और वंहा से उठ कर रसोई में जा बैठी, माँ को ऐसी हालत में देखकर मुझे अपने होने का अफ़सोस हो रहा था, मैं सोच रही थी कि काश मैं लड़की से लड़का बन जाऊं और अपनी माँ को ख़ुशी दे सकूँ, लेकिन भला ऐसा कैसे हो सकता है, पिताजी के वो शब्द मेरे कानो में भी गूंज रहे थे, और माँ तो मानो अपने होश में ही नहीं थीं, पिताजी को माँ कि हालत का शायद अंदाजा नहीं था सो वो दफ्तर जाने के लिए तैयार हुए और माँ को खाने का डिब्बा लगाने को कहा, माँ डिब्बा लेकर पिताजी कि देने आई तो पिताजी से माँ को देखा और वह माँ को कमरे में हाँथ पकड़ कर ले गए, पिताजी से जैसे ही माँ से पूछा कि क्या हुआ तुम इतनी परेशान क्यों हों , तो माँ ने पिताजी कि और देखा और चुप कड़ी रहीं, माँ शायद पिताजी से कोई शिकायत करना नहीं चाहती थीं, लेकिन माँ कि आँखों में माँ का दर्द साफ़ दिख रहा था, बस उसे कोई पड़ने वाला ही नहीं था, माँ के कुछ भी न बोलने पर पिताजी ने माँ से कहा कि देखो तुम चिंता मत करो, भगवान् सब अच्छा ही करेंगे, और यह कहकर पिताजी दफ्तर के लिए निकल गए, माँ ने दादी को बुलाया और कहा कि माता जी आप भी चलिए खाना खा लीजिये, दादी ने माँ से कहा कि ठीक है मेरा और अपना दोनों का खाना ले आ दोनों साथ में बैठ कर खायेंगे और बातें भी करतें जायेगे, मुझे कल वापिस गाँव जाना है इसलिए जाने से पहले तुझे सबकुछ समझा दूँ कि गर्भवती स्त्री को कैसे कैसे रहना चाहिए, माँ ने दादी और अपने लिए खाना लगाया और माँ दादी के कमरे में चली गयी, माँ जैसे ही वहां पहुंची तो माँ ने देखा कि दादी .............................(शेष अगले एपिसोड में ) आपको यह कहानी कैसी लग रही है कृपा जरुर बताएं

1 comment:

  1. सचमुच में आप जैसे जैसे लिख रही हैं...उससे लगता है की जैसे ये कहानी किसी सच्ची घटना पर आधारित है....कृपया लिखना जारी रखे...

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