Monday 4 January 2010

एक लड़की की कहानी (एपिसोड - ३ )

दादी ने माँ से ऐसा क्या कहा जो माँ रो पड़ी, मैं यह बात लगातार सोचती रही, मैं अन्दर ही अन्दर माँ से पूछ भी रही थी कि ' मेरी प्यारी माँ मुझे तो बताओ कि आपके रोने का क्या कारण है ? ' लेकिन शायाद मेरी आवाज मेरी माँ नहीं सुन पार रही थी, शायद मेरे अलावा माँ को रोते हुए पिताजी या दादी में से किसी ने भी नहीं देखा था। माँ ने चुपचाप से अपने आँचल से अपने आंसू स्वयं ही पोछ लिए और रसोई में जाकर फिर से काम में लग गयी। घर में सभी लोग सो चुके थे ओर माँ पूरी रसोई की सफाई करके सोने के लिए कमरे में आई तो देखा कि पिताजी भी सो चुके थे, एक बार को माँ ने पिताजी को उठाने के लिए उनकी बांह पकड़ी, शायद माँ पिताजी से कोई बात करना चाहती थी, लेकिन माँ ने देखा कि पिताजी बहुत ही गहरी नींद में सो रहे है ओर सोते समय भी पिताजी के चहरे पर एक ख़ुशी झलक रही थी, सो माँ ने पिताजी को नहीं उठाया ओर खुद भी सोने के लिए लेट गयी, माँ सोते हुए भी सो नहीं रही थीं, बार बार माँ करवटें बदल रही थी , माँ के करवट बदलने के कारण माँ मैं भी माँ के साथ जाग रही थी, और सोच रही थी कि भगवान् मेरी माँ कि परेशानी दूर करो, मैं अपना दुःख किसी से बाँट नहीं पा रही थीं इसलिए शायद माँ ज्यादा परेशान थीं , मैं माँ का दुःख बांटना चाहती थी लेकिन माँ मेरी उपस्थिति को नहीं महसूस कर रही थीं , देखते ही देखते रात बीत गयी और भोर हो गयी , पक्षियों के चहचहाने कि आवाज कानो में पड़ते ही माँ एक दम से उठी और फिर से अपने काम पर लग गयी, माँ ने पूरा घर साफ़ किया और नहा कर तुलसी जी कि पूजा कि और माँ ने पूजा में भगवान् से माँगा कि हे भगवान् मेरी लाज रख लेना, माँ का यह अधुरा वाक्य सुनकर मैं विचलित हो गयी कि ऐसा क्या हो गया है जिससे माँ कि लाज खतरे में पड़ गयी, माँ के अधूरे यह शब्द का क्या मतलब है? माँ किस बात को लेकर परेशान है, मैं कैसे पता लगाऊं, माँ रसूई में गयी और सबके लिए चाय बनाई पहले दादी के लिए माँ चाय लेकर गयी और माँ ने देखा कि दादी पूजा कर रही है सो माँ दादी कि चाय कटोरी से ढक कर लोट ही रही थीं कि दादी ने आवाज लगाईं ' बहु जरा इधर आ और मेरे साथ पूजा में बैठ, माँ दादी के साथ पूजा में बैठी तो दादी ने माँ से कहा कि गर्ववती स्त्री को रामायण सुननी चाहिए इससे होने वाले बच्चे पर अच्छा असर पड़ता है, इसलिए आज से रोजाना तू रामायण सुना कर, मैं चाहती हूँ कि मेरा पोता भगवान् रामचंद्र कि तरह ही बने, यह सुनकर माँ कर मुंह रात कि तरह ही उतर गया, मुझे भी यह सुनकर बहुत दुःख हुआ कि दादी मेरे आने का नहीं बल्कि अपने पोते के आने का इन्तजार कर रहीं है, लेकिन मेरा दुःख मुझे मेरी माँ के दुःख से बहुत कम था, माँ रामायण सुन रही थीं लेकिन उनका ध्यान कहीं और था , अन्दर ही अन्दर उन्हें कोई बात खाय जा रही थी, एक बार को मेरे मन में यह बात भी आई कि कहीं माँ दादी की बात से ही तो दुखी नहीं है? शायद हां माँ सच में दादी कि बातों से ही दुखी है, चूँकि माँ को कही न कही मेरे होने का अहसास है, जो माँ दादी को बता नहीं पा रही है और आने वाले कल को सोच कर दुखी हो रही है। रामायण सुनकर माँ पिताजी के लिए चाय लेकर गयी और पिताजी से अटकते अटकते बोली कि' सुनिए मुझे आपसे एक बात करनी है' पिताजी ने कहा कि हां-हां बोलो, माँ ने कहा कि मेरे मन में एक डर है, पिताजी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि कैसा डर? सब कुछ ठीक तो है न? माँ ने कहा कि अच्छा यह बताइये कि आपको बेटा चाहिए कि बेटी? पिताजी ने चाय का कप नीचे रखकर माँ का हाथ पकड़कर बोले, ' तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो' । माँ ने कहा कि ऐसे ही बताइये ? पिताजी ने कहा कि ठीक है अगर तुम यह जानना ही चाहती हो तो सुनो ................(शेष अगले एपिसोड में )

1 comment:

  1. गर्भ में से ही लड़की की कहानी को सुनना बहुत रोमांचक अनुभूति से भर देता है....आपके लेखन की जितनी भी तारीफ की जाये वो कम है...कृपया यूँ ही लिखती रहे....सुभकामनाये

    ReplyDelete