Thursday 3 December 2009

क्यूंकि तुम लड़की हो॥


क्यूंकि तुम लड़की हो। यह शब्द मैंने अपने जीवन में लाखो बार सुने है, लेकिन मेरे अपनों से नही बल्कि बहार वालो से यानी समाज से। और मैंने ही क्या यह शब्द तो लगभग सभी लडकियों ने सुने ही होंगे, वो बात अलग है की हमारे माता पिता भले ही हमे ऐसा न बोलते हों, लेकिन कही न कही वो भी दुव्यवहार करतें ही हैं, दुसरो की लडकियों को तो उन्होंने भी कभी न कभी बोला ही है, की तुम एक लड़की हो तुम्हे ऐसा नही करना चाहिए, तुम्हे वैसा नही करना चाहिए, तुम्हे ऐसा रहना चाहिए, तुम्हे ऐसा हँसना चाहिए, तुम्हे ऐसे चलना चाहिए, और न जाने क्या क्या?
मेरे मन में कही बार यह सवाल आता है की हम जिस समाज की बात करतें है आखिर वह समाज क्या है? किसने बनाया है उस समाज को? कोन कोन लोग शामिल हैं उस समाज में?
लेकिन शायद अब मैंने यह बात जान ले है की समाज किसी और ने नही हम सभी लोगो ने मिलकर बनाया है। हमने एक ऐसे समाज की स्थापना की है जिसमे हमे अपनों को बचाना है और दुसरो के लिए सीमाए तय करनी है, जब अपनी बेटी की बात होती है तो माता पिता उसे देश के सर्वोच्च पद पर देखना चाहतें है, फ़िर भले ही समाज कुछ भी कहे किसी को किसी बात की परवाह नही होती, लेकिन जब बात समाज में रहने वालो की बेटियों की होती है तो यह बात शायद दुसरो को अच्छी नहीं लगती।
अब कोई यह बताये की समाज के नियम किसके लिए हैं? अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम तय करने वाले इस समाज पर कोई कैसे भरोसा करे?
लडकियों को समाज के नाम पर न जाने कितने ताने मिलतें है? वह सुबह से शाम तक कितनी बार सुनती है की ऐसे मत करो क्यूंकि तुम एक लड़की हो। तुम्हे परे घर जाना है, ससुराल वालें क्या कहेगे? क्या आपने किसी लडको को यह सब सुनते हुए देखा है? नही। कभी नही? एक लड़की का जीवन शादी के बाद पुरी तरह से बदल जाता है, उसकी आदतें, उसका बचपन, उसके माता पिता, उसका हँसना, उसका चलना आदि सभी कुछ अर्थार्थ उसका जीवन की एक नयी शुरात यानी एक नया जन्म, यह नया जन्म एक लड़के का क्यो नही होता? उसकी लाइफ में कोई परिवर्तन क्यो नही आता? वह क्यो शादी के बात भी अपनी आदतें नहीं बदलता? देखा जाए तो वह बदलेगा भी क्यो? लड़का जो ठहरा !
लडकियों को बचपन से ही एडजस्ट करना सिखाया जाता है, बचपन में भाई के साथ एडजस्ट करना , अगर सब्जी कम है तो ख़ुद रूखे खाना और भाई के लिए छोड़ देना, क्यूंकि वो एक लड़का है। हो सकता है कुछ घरो में ऐसा न हो लेकिन कही न कही लडकियों को एडजस्ट करने को कहा ही जाता है। माँ गिलास भर के लड़के को दूध पीने को देती है लेकिन लड़की को नही देती, क्यूंकि वह एक लड़की है! ऐसी ही बहुत सी बातें है जो मैं लिखना चाहती हूँ, इसलिए
मैं आपको एक लड़की की कहानी सुनाना चाहती हूँ जो एपिसोड वाइज आपको पढाई जायेगी, अगर आप भी मेरी इस कहानी का हिस्सा बनना चाहतें हैं तो आप अपनी कोई आपबीती मेल से भेजें. हर सोमवार को एक एक एपिसोड आपको पड़ने को मिलेगा, हो सकता है हमारी इस कोशिश से समाज की आंखों पर से परदा हट जाय, क्यूंकि अक्सर लोग सुनी सुनाई बातों से ज्यादा पड़ी पढाई बातों पर विश्वास करतें है, तो चलिए शुरू करें है हम एक आन्दोलन जिसमे समाज में हो रहे लडकियों से दोहरे व्यवहार को ख़तम करने का संकल्प लेतें है, यक़ीनन हमारे द्वारा शुरू किया यह आन्दोलन हमारी आने वाली नयी पीड़ी को समान से जीने का अधिकार देगी, यदि हमारी माँ और नानी ने यह आन्दोलन पहले ही शुरू कर दिया होता तो शायद हम भी बराबरी के अधिकार के साथ जी रहे होते। खेर अब भी देर नही हुई बस शुरू करतें है एक लड़की की कहानी। और मिलतें है हर सोमवार को।

आप मुझे मेल कर सकतें है॥ merikoshish@gmail.com

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