Sunday 6 December 2009

एक लड़की की कहानी (एपिसोड - 1)


मेरा नाम 'लड़की ' है और आज मैं आज आपको अपनी कहानी सुनाती हूँ। अभी मेरा जन्म नही हुआ है लेकिन सामाजिक तोर से मेरा नामकरण मेरे जन्म लेने के बहुत पहले ही हो चुका है। और मेरी कहानी उस दिन से शुरू होती है जब मैंने मेरी माँ के पेट में मैंने अपने आने की दस्तक दी। मेरी माँ की खुशियों का कोई ठिकाना नही था और वह इतनी खुश थी की अपनी खुशी किसी से बाँट भी नही पा रही थीं, उनकी इस खुशी में मैं भी कुश थी और माँ को मैं अन्दर से ही गुदगुदा रही थी जिससे माँ को मेरी हरकत का पता चल रहा था और वो उस अहसास को महसूस करते हुए और खुश हो रही थी, माँ ने पुरे दिन इन्तजार किया की मेरे मेरे पिताजी काम पर से घर लोंटें और माँ उनको यह खुशखबरी दें की वो पिता बनने वाले है, माँ ने उस दिन पकवान बनाय और शाम को पिताजी के घर आते ही उन्हें चाय देते हुए शर्माते हुए कहा की मैं आपको एक खुशखबरी सुनाना चाहती हूँ, तो पिताजी ने बड़ी उत्सुकता वश माँ से कहा की हाँ हाँ जल्दी बताओ , शायद मेरे पिताजी को माँ के शर्माने से पता चल गया होगा की माँ उन्हें कोन सी खुशखबरी सुनाना चाहती हैं, लेकिन फ़िर भी पिताजी यह बात माँ के मुंह से ही सुनना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बड़े प्यार से माँ से पूछा की जल्दी बताओ न , माँ ने शर्माते हुए धीरे धीरे कहा की आप पिता बनने वाले हैं। यह सुनते तो मानो मेरे पिताजी के पाँव जमीन पर नही टिके और उन्होंने माँ को गोद में उठा लिया और भगवान् से पहले माँ को शुक्रियादा किया की 'तुमने मुझे आज पिता बनने का सुख दिया' फ़िर दोनों ने भगवान् के मन्दिर के सामने अपना सिर जुखाते हुआ भगवान् को भी धन्यवाद किया, मैं अपने माँ और पिताजी को मेरे आने पर इतना खुश देख कर बहुत खुश हो रही थी और बस चाह रही थी की मैं कब अपने माँ और पिता के हांथों में खेलूं और उनका वो प्रेम पाऊं जो वो लोग मुझे देना चाहतें है,
अपनी खुशी का इजहार करने के चक्कर में पिताजी की चाय तो ठंडी ही हो गयी थी। इसलिए पिताजी ने माँ से कहा की अब एक गरमा गरमा चाय बनाओ और हां साथ में गर्म-गर्म पकोड़े भी बना लो मैं १० मिनट में आता हूँ, माँ चा और पकोड़े बनाकर टेबल पर रख ही रहीं थीं की इतने में पिताजी मिठाई का डिब्बा लेते हुए घर में घुसे , माँ ने पिताजी से पूछा की आप कहा गए थे, देखो चाय फ़िर से ठंडी हो जायेगी, चलिए हाँथ धोलो और जल्दी से आकर चाय और पकोड़े खा लो, पिताजी ने कहा की हां हां ठीक है, मैं हाँथ धो कर आता हूँ लेकिन तुम भी पहले हाँथ धो लो और यह मिठाई एक प्लेट में रख लो, माँ समझ गयी और माँ ने पूजा के लिए एक प्लेट त्यार कर ली, पिताजी जैसे ही हाँथ थो कर आए तो माँ ने कहा की चलिए जल्दी से पूजा कर लेतें हैं वरना चाय ठंडी हो जायेगी, लेकिन पिताजी को चाय के ठंडे होने का कोई डर नही था , वह तो उस दिन भगवान् का तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहते थे, सो पूजा में बैठे और भगवान् को भोग लगा कर परशाद पहले माँ को २ बार खिलाया (एक मेरे हिस्से का और दूसरा माँ के हिस्से का ) उसके बाद ख़ुद ने भी परशाद खाया और फ़िर चाय पीने के लिए टेबल पर आए। माँ और पिताजी चाय पीते - पीते मेरे आने के लिए अलग अलग त्यारियों की बातें कर ही रहे थे की इतने में दरवाजा खटखटाने के आवाज आई , माँ उठी और दरवाजे की कुण्डी खोल ही रही थी की....(शेष अगले एपिसोड में )

3 comments:

  1. bahut khub likha hai. aapne bahut acchi shuruaat ki hai....

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  2. achcha likha hai... lekin...adhoora hone ke karan.. utsukata bani huyi hai...!!!

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  3. jindgi k un khamos palo ka u btna man romanchit ho jata hai. us lambi duri k ahsas hi to khusi hai. aap ki kosis bhawvibhor kar deti hai

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