Friday 20 November 2009

हम किसी से कम नहीं....


महिलाएं आज भले ही हर क्षेत्र में उंची तनख्वाह और उंचे ओहदे पर काम कर रही हैं। लेकिन अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां महिलाओं को यह कह कर मना किया जाता है कि उनके प्रजनन से संसाधन का अपव्यय होगा। जी हां हम बात कर रहे हैं, सुखोइ विमान उड़ाने पर वायु सेना के उपाध्यक्ष एयर मार्शल के बयान पर। उन्होंने कहा कि महिलाओं के परिवार बढ़ाने की क्षमता के कारण फाइटर पायलट के प्रशिक्षण पर किए जाने वाले समय और खर्च का अपव्यय होगा। आइए जानते हैं कि इस पर महिलाओं की क्या प्रतिक्रिया है।
1. संगीता - महिलाओं को बराबर का हक दिलाने की बात करने से कुछ नहीं होगा। महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी सेवा को जिम्मेदारी के साथ निभा रही हैं। वायुसेना में भी महिलाएं काम कर रही हैं लेकिन सिर्फ़ प्रजनन के कारण अगर उसे फाइटर पायलट के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता तो ये नाइंसाफी है। अगर किसी लड़की में एक फाइटर पायलट बनने के सभी गुण मौजूद हैं तो उसे रूका नहीं जाना चाहिए।
2. पूजा - माना कि एक फाइटर पायलट के प्रशिक्षण पर लगभग 11 करोड़ रुपये का खर्च आता है। यह आधार बिल्कुल ठीक नहीं है कि बच्चे को जन्म देने के लिए महिलाएं एक साल तक सुखोइ नहीं उड़ा पाती जिससे समय का अपव्यय होता है। अगर ऐसा है तो महिलाओं को कोई काम नहीं करना चाहिए। अंतरिक्ष यात्री, पुलिस सेवा और सेना, ये कुछ ऐसी सेवाएं हैं जहां महिलाओं को काफी शारीरिक श्रम करना पड़ता है। लेकिन वे अपनी भूमिका को बेहतर तरीके से निभा रही हैं।
3. नमन - भारत में अभी तक सेना में महिलाओं की संख्या और देशों की तुलना में काफी कम है। क्या महिलाएं केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हैं। पुरूष हर बात में उन्हें कहते हैं कि रहने दो ये मर्दों का काम है। आज वह कौन सी जगह है जहां महिलाएं पुरषों के कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल रही हैं। केवल शारीरिक संरचना को ही आधार नहीं बनाया जा सकता, जिसके पास योग्यता है उसे किसी काम से मना नहीं किया जा सकता।
4. सबा - मैं वायु सेना के उपाध्यक्ष के बयान से पूरी तरह असहमत हूं। जो महिलाएं फाइटर पायलट बनने के लिए पूरी तरह फिट हैं, उन्हें केवल प्रजनन की क्षमता के कारण मना नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी कोई महिला अपने काम से अंतिम के चार महिनों के लिए ही छुट्टी लेती हैं। ऐसा भी नहीं है कि पुरूष कभी लंबी छुट्टी नहीं लेते हो। ऐसे में ये कहा का न्याय है कि बच्चे को जन्म देना एक बीमारी मान ली जाये।
5. नीतू - आये दिन सेना में महिलाओं के साथ होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार की खबरे सुनने को मिलती हैं। सेना की अधिकतर खबरे बाहर तक नहीं आ पाती। महिला कर्मियों को उनके मातृत्व अवकाश से वंचित करने की बात करना सरासर बेबुनियाद है। क्या किसी महिला को एक विशिष्ट कार्य करने से इसीलिए रोका जाना चाहिए कि वे मातृत्व अवकाश लेती हैं? औरत होने कारण उसे किसी काम से कैसे वंचित किया जा सकता है।
प्रस्तुति:- प्रीति पाण्डेय

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