Thursday 19 November 2009

मदद करने से लगता है डर...


घर से निकली थी जल्दी जल्दी की कही ऑफिस की देर न हो जाए। इसलिए सोचा की क्यो न पैदल जाने की बजे रिक्शा ही कर लिया जाए। रिक्शा लेने के लिए जैसे ही रिक्शा स्टैंड पर पहुंची तो देखा की वह तो लोगो की काफी भीड़ लगी थी। मैंने भी उस भीड़ में से अपना सर किसी तरह घुसा कर देखा तो एक आदमी बेहोश पड़ा हुआ है जिसके सर पर चोट लगी हुई है और खून उस चोट पर ही जमा हुआ है। मैंने अपने पास खड़े अंकल जी से पूछा की अंकल जी इस आदमी को क्या हो गया है? तो उनका जवाब सुनकर को मैं भोचक्की रह गयी ॥ उनके शब्द उस बेहोश पड़े आदमी के लिए कुछ ऐसे थे। " अरे बेटा यह साला तो मूत पीकर पड़ा हुआ है, इन गधो से कोई यह पूछे की जब इनसे यह मूत हजम नही होता तो पीतें क्यों हैं? " मैं चुपचाप खड़ी उन अंकल जी की बातें सुन रही थी और अन्दर ही अन्दर सोच रही थी की इन अंकल को यह भी शर्म नही है की वो यह बातें एक लड़की से कह रहे है। क्या करूँ मुझे ऐसी बातें बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए अपना आपको रोक नही पाये और मैंने उन अंकल जी से कह ही दिया की अंकल आपको कैसे पता की इस आदमी ने शराब पी राखी है? क्या इसने आपके सामने शराब पी थी? आप लोग भीड़ लगा कर सभी खड़े हैं न तो कोई उससे होश में लाने को कोशिश कर रहा है न ही कोई पुलिस को इस आदमी के सड़क पर बेहोश पड़े रहने की सोचना दे रहा है, बल्कि आप लोग तो इसके लिए उल्टी सीधी बातें बना रहे हो। मेरी यह बात सुनकर वो अंकल कुछ कहते इससे पहले ही एक दुसरे आदमी ने कहा की अरे बेटा आपको नही पता आय दिन सडको पर इस तरह के शराबी पड़े रहतें है, और उनकी इस बात पर वह खड़े बाकी लोगो ने भी सहमती जताई, मैंने कहा की आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं लकिन जरुरी तो नही की बेहोशी की हालत में सड़क पर पड़ा हर व्यक्ति ही शराबी है , और मान लो अगर वह शराबी है भी तो क्या उसे ऐसी हालत में सड़क पर पड़े रहने देना ठीक है? ऐसे तो कही अगर हममे से कोई बेहोश होकर सड़क पर गिर गया तो कोई भी हमारी यह ही सोच कर मदद नही करेगा की यह शराबी है इससे पड़े रहने दो। यह कह कर मैंने उन लोगो से बहस करने ठीक नही समझा और मेरे एक जान्ने वाले पुलिस कर्मी को फ़ोन पर उस बेहोश पड़े आदमी की सूचना दी। मैंने पुरे रास्ते यह ही सोचती रही की वास्तव में हम सभी कितने स्वार्थी हो गए हैं , हमे किसी से कोई मतलब नहीं , मतलब है भी तो सिर्फ़ अपने किसी मतलब के लिए। उस आदमी के चारो तरफ़ घेरा बनाकर उसकी बेहोशी वाली हालत में भी उससे नीचा दिखाने के लिए तो सभी जुट हो गए लेकिन इंसानियत दिखाने के लिए कोई आगे क्यो नहीं आया? किसी ने भी उसकी मदद करने की कोशिश क्यो नहीं की?

1 comment:

  1. प्रीति जी आप क्यों भूल जाती हैं कि आप दिल्ली जैसे महानगर में रह रही हैं और महानगरों मे संवेदनाओं और इंसानियत के लिए कोइ जगह नहीं है। मेरे अनुभव इससे भी कड़वे हैं, आपने बयान कर दिया और मैने नहीं। बहुत दुख होता है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं।

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