Friday 17 April 2009

कैसी हो हमारी सरकार ?


प्रीती पाण्डेय
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जनता से , जनता के लिए और जनता के द्बारा सरकार बनाना ही एक लोकतान्त्रिक देश की पहचान होती है। भारत का लोकतंत्र भी इसी प्रक्रिया पर आधारित है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है की न तो हमारे नेता आम जनता में से होतें हैं और न ही अपने को वह जनता के लिए समझते हैं। रही बात जनता के द्बारा तो बस यही एक परम सत्य है की कुर्सी तक पहुँचने के लिए कोठी में रहने वाले नेता को उन झुगियों में भी हाथ जोड़ कर जाना पड़ता है जंहा से आमतोर पर उन्हें गुजरना भी पसंद नहीं होगा। आख़िर वह ऐसा क्यों न करें , ऐसे समय पर तो एक - एक वोट भी बहुत कीमती होता है। लेकिन सवाल यह उठता है की जब सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं तो ऐसे में जनता आख़िर किसको वोट दे ? किस पैमाने के आधार पर वह अपनी सरकार का चुनाव करे? कैसी होनी चाहिए हमारी सरकार ? आइये जानते हैं बुद्धिजीवियो से उनकी महतवपूर्ण राय-
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नंदिता दास अभिनेत्री , सामाजिक कार्यकर्ता
यह एक अच्छा सवाल है कि हमारी सरकार कैसी हो ? क्यूंकि हम सभी वोट देते हैं इसलिए जब तक हमें यही स्पष्ट नहीं है की हमें अपनी सरकार कैसी चाहिए तब तक हम यूँही अपना कीमती वोट जाया कैसे कर सकतें हैं ? रही बात मेरी तो मेरा मानना है की हमारी सरकार पारदर्शी होनी चाहिए जहा उसके नागरिक को प्रत्येक व्यवस्था के बारे में पता हो। चूँकि हम भी सरकार की तमाम व्यवस्थाओं से जुडें हुयें हैं इसलिए हमें भी इमानदार होना पड़ेगा। एक दुसरे पर अंगुली उठाने से कोई फायदा नहीं है, यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें हम सभी फंसे हुयें हैं और इससे तभी निकला जा सकता है जब हम सभी मिलकर इस चक्रव्यूह को तोडें । चूँकि यदि व्यवस्था ख़राब है तो कहीं न कहीं उसे ख़राब करने में हम और आप भी शामिल हैं । ख़राब व्यवस्था का हिस्सा बनकर अक्सर स्थिति से समझोता करना हमारी आदत बन चुकी है। भ्रष्टाचार शब्द केवल नेताओं और सरकार के लिए ही इस्तेमाल करना तब सही है जब हम स्वयम भ्रष्ट न हों । धर्म , पैसे या अन्य किसी लोभ में आकर वोट देना अपने वोट का अपमान करने के समान है। इसलिए हमें एक आदर्श समाज की स्थापना करनी होगी तभी हम एक आदर्श सरकार का सपना साकार कर पायेंगे।
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डा युधिष्ठिर शर्मा
पूर्व न्यायधीश
जिला न्यायालय , गाजियाबाद
मेरा मानना है की शासन ऐसा हो जहाँ अमीर -गरीब का कोई भेद न हो। जो नियम और कानून कोठी में रहने वाले के लिए हों वही नियम और कानून झोपडी में रहने वाले के लिए हों अर्थार्थ कानून व्यवस्था सुधरी हुई हो। चूँकि जहाँ की कानून व्यवस्था अच्छी होती है वंहा अपराध नामक
शत्रु डर के मारे दूर भागता है। और जहाँ अपराध नहीं होता वह देश अपने आप में ही एक संपन्न देश होता है। सरकार परिवार के उस मुखिया की तरह है जिसके जीवन का बस एक ही उद्देश्य होता है की उसका परिवार का हर सदस्य सुख समृधि से परिपूर्ण रहे। सरकार जनहित के लिए काम करे। सरकार के नुमायेंदें शिक्षित हों , जो एक शिक्षित समाज की स्थापना कर सकें । सरकार बनाने के लिए ऐसे व्यक्ति चुने जाएँ जो जनभावना से प्रेरित हों और जनहित के लिए कार्य करें। ऐसा जनतंत्र का निर्माण करें जिसमें सभी निर्भीक होकर चैन से सों सकें । प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से कर सकें। इसलिए सरकार जनता के लिए हो और जनता के लिए ही काम करे।
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कुलदीप नैयर
वरिष्ठ पत्रकार
सरकार ऐसी हो जो जनता के लिए हो और जनता के हित में सोचे। जिसके राज्य में सभी के सर पर छत हो और पेट में खाना हो। जिसके नागरिको में जागरूकता हो और सभी के पास रोजगार हो। आजादी के ६२ वर्ष बाद भी यदि हम आज भी अपने देश को गरीबी से मुक्ति नहीं दिला पाएं तो यह हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात है। आज भी हम गरीबी से नहीं उबरे हैं । अच्छी सरकार वही है जिसके शासन में किसी भी नागरिक की आंखों में आंसू न हो। सरकार का सबसे पहला काम यही है की वह अपने देश को गरीबी मुक्त कार्य । उप्पर उठे लोगो को और उप्पर उठाने की बजाये गरीबो को उप्पर उठाय । हमारा देश अगर आज भी विकसित नही हो पाया है तो इसके पीछे घूसखोरी ही सबसे बड़ा कारण है। प्रत्येक काम को करवाने के लिए चपरासी से लेकर अधिकारी तक सबका अलग अलग हिसाब - किताब है। ऐसे में जो धनि वर्ग है वह तो अपना काम अपने पैसो के बल पर करवाने में सक्षम है लेकिन निर्धन बेचारा कहा से घूस देने के लिए धन लायें । उसके पास तो पेट भरने के लिए पैसे नही तो वह यह घूस कैसे दें? पहले कहीं एक -दो आदमी हुआ करता था जो रिश्वत लिया करता था, लेकिन आजकल तो यह परम्परा बन गयी है। और अफ़सोस की बात है की सरकारी काम को करवाने में ही ऐसी परम्पराए लागू होती हैं । व्यवस्थाओं को तोड़ कर उनका मजाक उडाया जाता है। जिस देश में कानून तोड़ना कोई बड़ी बात नहीं समझी जाती वंहा कैसे कोई व्यवस्था सुचारू रूप से चलाई जा सकती है। कानून बनता बाद में है लेकिन उससे बच निकलने के उपाय पहले ही आ जाते है। और वह उपाए है रिश्वत । हमारे देश में रिश्वत को सभी समस्याओं से बच निकलने की एक मात्र दवा की उपाधि प्राप्त हो चुकी है। बस रिश्वत दीजिये और नियमों को धडाधड तोडिये ।
अब बात करतें है। सुरक्षा की तो जहाँ तक मेरा मानना है , जिस देश की सरकार अपने देश के नागरिको को ऐसी सुरक्षा दे की वह अपने देश में कहीं भी आजादी से घूम सकें , तो यकीनन यह एक अच्छी सरकार का ही उदाहरण है। चूँकि जब व्यक्ति सुरक्षित है तभी बाकी सारे काम किए जा सकतें है। सुरक्षा किसी भी देश की पहली आवश्यकता है। आख़िर में मैं यही कहूँगा की सरकार में साफ़ सुथरी छवि वाले व्यक्ति हों जो सच में जनता के हित में कार्य करें , तभी हमारी सरकार एक आदर्श सरकार कहलाई जा सकती है।
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मनीष शिशोदिया
सामाजिक कार्यकर्ता
सरकार की बात होती है तो हमें सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिए की सरकार से हमारा क्या अभिप्राय है अर्थार्थ सरकार क्या है और हम उससे क्या चाहते हैं? सरकार कोई एक आदमी या कोई एक पार्टी नही है। सरकार तो एक पूरा तंत्र है जो हमारे चारो और घूमता रहता है। फ़िर चाहे बात सरकारी स्कूल की हो या किसी भी सरकारी कार्यालय की। नेता तो बस इस पुरे तंत्र को चलाने वाले होतें हैं। एक नेता के आने से सरकारी कार्यालयों में नयी भर्तियाँ नहीं हों जाती। सब कुछ ज्यों का त्यों ही रहता है। बस नया चालक आ जाता है। व्यवस्था में कुछ फेर बदल कर दिया जाता है लेकिन व्यवस्था वही के वही रहती है। सरकार ऐसी होनी चाहिए जिसे स्वम जनता चलाए , क्यूंकि जहा सरकारी ठप्पा लगता है वहीं से सारी फसाद शुरू होती है। सरकारी कर्मचारी बिना घूस लिए काम करने को तयार नही होते। ऐसा नही है की जिनके हाथ में सत्ता होती वह कुछ करना ही नही चाहते। सारे तो नहीं लेकिन फ़िर भी कुछ नेता सच में ऐसे होतें हैं जो जनता के हित में काम करना चाहते हैं लेकिन समस्या यह है की वह इस पुरे तंत्र को चाह कर भी नही बदल सकतें। इसलिए इस पुरे तंत्र को तभी बदला जा सकता है जब सरकारी तंत्र को इस बात का भाईकी अगर हमने अपना काम सही तरीके से और इमानदारी से नहीं किया तो हमें नोकरी से निकाला भी जा सकता है। सरकारी नोकरी से लोग निश्चिंत हो जातें हैं की अब उन्हें कोई नहीं निकाल सकता। अरे ऐसे कैसे कोई निश्चिंत कर दिया जा सकता है? कब तक हम सरकार के नाम पर बस पार्टियां ही बदलते रहेंगे? कुछ तो ऐसा हो जिससे लगे की हाँ हमने सही व्यक्ति को अपना वोट दिया है।जिसके आने से व्यवस्थाओं में सुधार आय । मेरी राय में जिस तरह जनता को अपने नेता को बदलने का अधिकार देर से ही सही लेकिन दिया ही जाता है उसी तरह प्रत्येक सरकारी तंत्र में भी जनता को ऐसा ही अधिकार होना चाहिए । यदि कोई सरकारी स्कूल , अस्पताल , पुलिस स्टेसन या फ़िर कोई भी सरकारी कार्यालय का अधिकारी या कर्मचारी अपने काम को करने से मन करें , जनता के साथ ग़लत बर्ताव करें या फ़िर रिश्वत मांगें तो उसको जनशिकायत के आधार पर तुंरत निकाला जाना चाहिए। इसलिए जनता की सरकार जनता के द्वारा ही चलाई जाय तभी वह आमजन की सरकार कह्लाय्गी अर्थात सरकार ऐसी हो जो अमीरों से लेकर गरीबो तक की पहुँच में हो।

(गौड़संस टाईम्स में प्रकाशित )

4 comments:

  1. आपने बहुत अच्छा लिखा है...लेकिन सरकार किसी की हो लेकिन उसमे आम जनता का हित होना चाहिए. आज खास कर युवा वर्ग का नेताओ और चुनाव से विश्वास उठ गया है. नेताओ के लिए चुनौती है की वो उस विश्वास को वापस प्राप्त करे यही असली अग्नि परीक्षा है....
    संदीप द्विवेदी

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  2. आदरणीय देवी जी
    बहुत अच्छा लगा आपका लेखन
    आज कल तो लिखने पढने वालो की कमी हो गयी है ,ऐसे समय में ब्लॉग पर लोगों को लिखता-पढता देख बडा सुकून मिलता है लेकिन एक कष्ट है कि ब्लॉगर भी लिखने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जबकि पढने पर कम .--------
    नई कला, नूतन रचनाएँ ,नई सूझ ,नूतन साधन
    नये भाव ,नूतन उमंग से , वीर बने रहते नूतन
    शुभकामनाये
    जय हिंद

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  3. dekhiye,aap ke nimantran par aa gaya.achchha blog hai.aap likhti rahen...agar blog ka ek focus ho to behtar...waise yah meri vyaktigat rai hai.

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  4. आपकी प्रस्तुति अच्छी है। जिनके मत आपने दिये हैं, वे स‌ारे स‌ामाजिक लोग हैं और स‌भी की राय बहुत ही उम्दा है। आपको स‌ाधुवाद।

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