Sunday 5 April 2009

बदलता परिवेश हुआ बेअसर


हर साल की तरह इस साल भी ८ मार्च को बड़े जोर शोर से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। लेकिन मंगलूर में घटी घटना को देखते हुए मन में यही ख्याल आया की जिस देश में महिलाओं की स्थिति आज भी वही है जो सदियों पहले हुआ करती थी , पहले भी उसे जानवरों की तरह खिचेड- खिचेड कर पीटा जाता था और आज भी पीटा जा रहा है तो भला हम कैसे कह सकते हैं की हम महिलाओं की स्थिति सुधर गयी है। सुधार का मतलब कुछ गिनी चुनी महिलाओं से नही होता, सुधार तो वह होता है जो एक सम्पूर्ण वर्ग के लिए हुआ हो। पुरुषवादी मानसिकता का शिकार हमारा समाज आख़िर क्यों महिलाओं को किसी भी मामले में कमजोर समझता है।
जिस समाज में हम रहते हैं वहा लड़कियों को बराबरी का दर्जा देने की बात कही जाती है। जी हां वही बराबरी जिसे पाने के लिए हम महिलाओं ने न जाने कितना संघर्ष किया तब जाकर कही हमें पुरषों की बराबरी का एक छोटा सा टुकडा प्राप्त हुआ। जिस प्रकार किसी जानवर के सामने एक पुरी रोटी में से एक टुकडा तोड़कर फेंक दिया जाता है और फेंकने वाला यह सोच कर खुश हो जाता है की इसका पेट बस इतना ही है जो इस टुकड़े को ही हजम कर पायेगा। अगर ज्यादा दे दिया तो उसमे हमारा निवाला छीनने की हिम्मत आ जायेगी। ठीक इसी प्रकार की सोच पुरुषवादी समाज हम महिलाओं के प्रति रखता है । उन्हें लगता है की अगर महिलाओं को ज्यादा अधिकार दे दिए गए तो समाज में पुरषों का स्वामित्व ख़त्म हो जायेगा। यानी कुल मिला कर यही कह सकते है की बराबरी के नाम पर हम महिलाओं को एक लोलीपोप थमा दिया गया है जिसे पाकर हम भी बहुत खुश हैं की हम किसी से कम नही।
एक लड़की के लिए न जाने कितनी सीमाएं है, जिन्हें लाँघने पर उसे कोसा जाता है। वह ऑफिस में पुरषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम तो कर सकती है लेकिन वही डिस्को या बार में जाने से चरित्रहीन होने का लेबल उसके माथे पर चिपका दिया जाता है। ऐसा नही है की पुरूष वर्ग महिलाओं को ऐसी जगह देखना ही नही चाहते , वह महिलाओं को बार या डिस्को में देखना तो चाहते हैं लेकिन डिस्को या बार वाली महिला को अपने परिवार में या अपनी पत्नी के रूप में नही देखना चाहते।
आज भी महिला वर्ग के लिए समाज की सोच काफी पिछडी हुई है। जो लड़किया डिस्को या बार में जाती हैं , पुरूष उनके साथ घुमने फिरने के लिए तो उतावले रहते हैं लेकिन जब बात उन्ही लड़कियों को अपनी पत्नी बनाने की आती है तो वे लड़किया बिगड़ी हुई लड़किया हो जाती हैं।
समय बदल गया है। आजकल जिस प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान का अनुमान अच्छे कपड़े, गाड़ी और खान- पान से लगाया जाता है उसी तरह डिस्को में जाना भी, जाने वालो के लिए उनकी अच्छी जीवन शैली का ही एक हिस्सा है। और आज के युवा अपनेआप को किसी भी बात में पीछे नही देखना चाहते। यदि ऐसे में समाज या समाज के कुछ ठेकेदार बजाये उन्हें समझने के, उन्हें सुधारने के लिए जानवरों की तरह पीटेंगे या गाली गलोज करेंगे तो यह कहा की इंसानियत है। एक तरफ़ तो सरकार १८ साल से ज्यादा उम्र वालो को बालिग़ करार देती है और उसे वोट देने कहा अधिकार देती है तो फ़िर भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में उसी बालिग़ लड़के या लड़की को अपनी मर्जी से खाने- पीने, और अपने जीवन को अपने ढंग से जीने का अधिकार क्यो नही है। यदि पब में जाना ग़लत है तो सरकार पब खोलने की मंजूरी ही क्यो देती है? और यदि पब मात्र पुरूष वर्ग के लिए ही खोले गए हैं तो उनके बाहर यह क्यो नही लिखा की पब में महिलाओं का आना वर्जित है। यदि शराब पीने मे कोई बुराई है या वह सेहत के लिए हानिकारक है तो क्या सिर्फ़ महिला के लिए? पुरषों के लिए क्या उसमें अमृत मिल जाता है। कहते है की पुरूष काफ़ी बलवान होते है और वह अपने अच्छे बुरे को अच्छी तरह जानते हैं , तो क्या आज की महिला अपने अच्छे बुरे का ख्याल नही रख सकती? एक पुरूष महिला से कभी भी ज्यादा शक्तिशाली नही रहा है। महिला यदि चाहे तो वह किसी पुरूष को बना भी सकती है तो मिटा भी सकती है। तभी कहा जाता है की हर सफल पुरूष के पीछे किसी न किसी महिला कहा हाथ अवश्य होता है। यदि महिला पब मे जाती है तो वह अपना भला बुरा अच्छे से जानती है और अपना ख्याल भी अच्छे से रख सकती है। बदलते परिवेश मे यदि हम सिर्फ़ अपने कपड़ो को बदल कर अपने आपको माडर्न होने कहा खिताब देना चाहते हैं तो यह कोई बदलाव नही हुआ। यह तो वही बात हो गयी की मोर के पंख लगाने से कोया मोर नही हो जाता। वह कोया ही रहता है। इसी तरह इंसान का विकास सोच से होता है न की कपड़ो से या रहने खाने के ढंग से ।

लड़कियों के बाल खीचते हुए उन्हें बुरी तरह से पीटना एक बहुत ही घटिया सोच ब्यान करता है। शिवसेना का काम क्या सिर्फ़ मासूमो को पीटना ही है। जिस तरह यह सेना युवाओं को सुधारने के नाम पर उन्हें पीटने के लिए मैदान मे कूद पड़ी उसी तरह अपने देश को आतंकवादी हमलो से बचाने के लिए यह सेना किस चूहे के बिल मे जा छुपती है। यदि मोर्चा निकालने का इतना ही शौक है तो उन बुराइयों के ख़िलाफ़ निकालिए जिनकी वजह से आज भी भारत विकसित नही हो पाया। यदि समाज से बुराई को भगाना ही चाहते हैं तो उन घुस्खोरो के ख़िलाफ़ आवाज उठाइये जो सरकारी दफ्तर मे मुफ्त की कुर्सी तोड़ रहे हैं और काम करवाने के लिए जिन्हें घूस देनी पड़ती है। ऐसे लोगो के लिए शिवसेना या कोई भी सेना आवाज क्यो नही उठाती। कैसे आवाज उठाय्गी कंही न कंही यह सेना भी जानती है की मासूमो को पीटना बहुत आसान है लेकिन समाज मे पनप रही कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ना बहुत मुश्किल काम है।

पब मे जाने को अश्लील समझा जाता है, भला कोई इनसे पूछे की भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को बचाने का ठेका लिए इस संगठन ने जिस तरह पब से लड़कियों को उनके बालो से घसीटकर बहार निकाला और उनके कपड़े फाड़कर उन्हें बेइज्जत किया, जो की शराब पीने से कही गुना ज्यादा अश्लील और असभ्य काम नही है ? अक्सर यही देखा गया है की महिलाओं के द्वारा उठाए गए किसी भी तरह के नए कदम पर पुरूष समाज इतना विचलित हो उठता है की बात विद्रोह तक आ जाती है। परम्परा के नाम पर ग़लत धारणा फैलाने वाले लोग शायद यह भूल जाते हैं की दुसरो के अधिकारों पर अंकुश लगाना किसी परम्परा के अंतर्गत नही आता और न ही किसी संविधान में आता है। पब जैसे सामाजिक माहोल मे लड़के और लड़कियों का एक साथ नाचना उसी तरह देखा जा सकता है जिस तरह गाओ की औरतें होली पर घर के आँगन मे पुरषों के साथ नाचती हैं। सार्वजानिक स्थानों पर लड़के और लड़कियों का एक साथ घूमना- फिरना, नाचना- गाना ज्यादा स्वस्थ्य और सभ्य हैं बजाये छोटी- छोटी गलियों मे छुप-छुप कर मिलना और अपनी वासना शांत करना तो अधिक घातक और अशोभनीय है।

इसलिए हर महिला को इस तरह के अत्याचार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज को बुलंद करना होगा , तभी पुरुषवादी इस समाज में महिलाए अपने आपको साबित कर सकेंगी ।

3 comments:

  1. आपके इस लेख पर निदा फाजली की ये शेर पेश है.....तेरे माथे पे ये आँचल बहुत खूब है.....इस आँचल से एक परचम बना लेती तो कितना अच्छा होता....

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  2. Totally agree with your viewpoint, being a male I cant think in exact terms but I can call a spade a spade,really situation is worsening dayby day.Whenever I think about females, children,young or old I feel myself depressed because neither they are safe at home nor out side.Where they should live with respect and safety, not a single safest place to mentio.Pathetic it is,a very sorry state of affairs.My full support and cooperation with you.
    regards
    dr.bhoopendra

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