Friday 10 April 2009

कोमल हैं कमजोर नहीं


प्रकर्ति ने भले ही एक औरत को कोमल बनाया हो लेकिन उसकी यह कोमलता उसको कमजोर नही बल्कि ताकतवर बनाती है। कोमल होने के बावजूद भी वह पुरषों से अधिक सबल होती है। अपने जीवन के हर पड़ाव को वह अपनी बहादुरी से पार करती है।
अगर आप गौर करके देखे तो आप ख़ुद पायेंगे की महिलाओं में पैदायशी ही विषम परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता पुरषों से कहीं अधिक ज्यादा होती है। एक औरत के जीवन में जितने उतार - चड़ाव आते हैं उतने पुरषों के जीवन में नही आते। वह अपने जीवन में तीन बार जन्म लेती है। पहला जन्म वह होता है जब वह इस दुनिया में अपनी आँखें खोलती है और किसी की बेटी के रूप में जानी जाती है , दूसरा जन्म उसका तब होता है जब वह बेटी से किसी की पत्नी बनती है और ससुराल रुपी एक अलग दुनिया में प्रवेश करती है जहा उसके लिए सब कुछ नया होता है , नए रिश्ते होते है जहा उसे कहा जाता है की अपने मायके की दुनिया को भूल कर उसे इसी नयी दुनिया को अपनाना है और इसी के अनुरूप अपने आपको ढालना है , तीसरा जन्म उसका तब होता है जब वह अपने नारी होने का सच्चा सुख प्राप्त करती है , यानी वह पत्नी से माँ बनती है। कहा जाता है की यह ऐसा वक्त होता है जब एक औरत स्वयम यम् के दर्शन कर लेती है। आज हम भले ही तकनिकी तोर पर पहले से काफी धनीहो चुके हैं लेकिन यह सच है की आज भी कितनी औरतें बच्चे को जन्म देने के दोरान अपना दम तोड़ देती हैं। अर्थार्त यह उनका सच में एक नया जन्म होता है। प्रसव के दर्द को सहने की हिम्मत सिर्फ़ एक औरत में ही हो सकती थी शायद भगवान् ने इसीलिए औरत को सृष्टि का रचनाकार बनाया। प्रत्येक महीने होने वाले मासिक धर्म जो यदि पुरषों को हो तो उनका हिलना - डुलना तक बंद हो जायेगा , लेकिन एक औरत की दिनचर्या ऐसी हालत में भी नही रूकती। बसों में धक्के खाकर भी वह अपने काम को पुरा करती है। यानी किसी भी तरह की रुकावट उसे उसके काम को पुरा करने से नहीं रोक सकती। लेकिन पुरूष प्रधान समाज फ़िर भी यही कह कर एक औरत को पीछे धकेलने की कोशिश करता रहता है की ' तुम इतना संघर्ष नही कर सकती क्यूंकि तुम कमजोर हो , यह तो सिर्फ़ पुरषों का ही काम है।' लेकिन इतनी प्रताड़ना के बाद भी जो समाज में अपनी एक पहचान दर्ज कराने में सफल हुई है वह कमजोर कैसे हो सकती है। समाज औरत की कोमलता, उसकी भावनात्मकता और उसकी ममता को उसकी कमजोरी समझता है जबकि यही से तो उसकी ताकत दिखाई देती है, जो तमाम रिश्तो को सुलझाते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है।
इसलिए जो इतनी शक्तिशाली है उसे कमजोर कहकर पीछे धकेलना ग़लत है। अपनी बेटी, बहु, बीवी सभी को आगे बढाने के लिए उन्हें प्रेरित करें ताकि वह भी किसी के उप्पर निर्भर न रहे । अब वह समय नहीं रहा जब लड़कियों को बोझ समझा जाता था, आज लड़किया , लड़को से १० कदम आगे हैं समाज ने काफ़ी हद तक लड़कियों को बराबरी का अधिकार दिया है, अब इस बची खुची बराबरी पाने के लिए हम महिलाओं को ही स्वयम कोशिश करनी होगी।


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