Thursday 2 April 2009

सुबह- शाम का संघर्ष


कहते है की महिलओं को अकेले में किसी सुनसान रास्ते पर नही जाना चाहिए क्यूंकि वहा उनको खतरा रहता है। आप समझ ही गए होंगे की यहाँ मैं किस तरह के खतरे की बात कर रही हु। लेकिन क्या आप एक भी ऐसी जगह बता सकते है जहा महिलाए सुरक्षित हो? शायद नही! आपके पास इस बात का कोई भी जवाब नही होगा क्यूंकि यही सच्चाई है की आज महिलाए कही भी सुरक्षित नही है। फ़िर चाहे वह अपने घर में हो या ऑफिस में। या फ़िर बस में ही क्यो न हो?
बस में चड़ने के लिए महिलओं को कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है। इस बात का अंदाजा तो एक महिला ही लगा सकती है। क्यूंकि कही न कही उनके मन में इस बात का आभास होता है की बस में महिलाओ के साथ किस तरह की हरकते हो सकती है। लेकिन ऑफिस जल्दी पहुचने के चलते महिलाओ को आंख मुद कर भी कई बार बस में जाना पड़ता है। कुछ तो भीड़ सच में होती है और कुछ भीड़ को दिखाने का नाटक किया जाता है। इतनी धक्का मुक्की होती है की किस किस को क्या कहे। और यदि कहती भी है तो आस पास के लोग साथ देने की बजाय टोंट कसने लगते है, "यदि खुले में बैठने का इतना ही शौक है तो ऑटो में आया करो।" यह बात बहुत अजीब सी है लेकिन यही सच है की कई बार महिलाओ को ऐसा सुनना पड़ता है। ऐसा नही है की हमारे पास इन छोटी बातो का कोई जवाब नही होता , होता है लेकिन हम यह सोच कर चुप रह जाते है की क्या ग़लत सोच रखने वालो के मुह लगना! क्यूंकि स्थिति ऐसी पैदा कर दी जाती है की वहा आप किसी को दोषी ठहरा ही नही सकते। सबके पास यही जवाब होता है की इतनी भीड़ है जिसमे धक्का जायज है। अब यह तो महिला ही जानती है की वह धक्का सच में लग रहा है या भीड़ की आड़ लेकर उसे जानबूझ कर लगाया जा रहा है। बसों में महिलाओ के हाल के बारे में जब मैंने एक दो महिलाओ से बात की तोह उनका कहना था की यदि उनके पास बसों में न चड़ने का कोई विकल्प होता तोह वह यकीनन उस विकल्प को अपना लेते लेकिन अफ़सोस की बात है की बसों में चड़ना हमारी मजबूरी है। कोई भी काम काजी महिला रोज रोज ऑटो में नही जा सकती। ऑफिस टाइम ऐसा होता है जिस समय बसों में भीड़ होती ही है आखिर कितनी बसे छोड ? बात सिर्फ़ एक बार की नही रोज सुबह और शाम दोनों ही समय बसों का यही हाल होता है। सुबह ऑफिस पहुचने की जल्दी तोह शाम में घर। यदि ऑफिस देर से पहुचते है तोह बोस की सुनो और यदि घर देर से पहुचते हो तोह घरवालो की सुनो। अब जाहिर सी बात है घर से निकलने की लडाई लड़ी है तोह हम महिलओं को इन सभी बातो को नजर अंदाज करने से काम नही चलेगा। जितना दबेंगे हमे उतना ही दबाया जायेगा। इसलिए हमे कोशिश करनी चाहिए की अपने ऊपर किसी को हावी न होने दे यदि कोई आपके साथ ग़लत करता तोह उसे मुह तोड़ जवाब दीजिये.

1 comment:

  1. बहुत सही लिखा है...एक पुरुष होते हुए भी मैंने महिलाओ की परेशानियों पर गौर किया है. दरअसल सारी समस्या की जड़ हमारे समाज की सोच है. सरकार हर कोशिश कर महिलाओ की उन्नति के बारे में फैसला लिया है लेकिन जब तक लोगो की सोच नहीं बदलेगी तब तक सारी समस्या कायम रहेगी...

    ReplyDelete