Wednesday 1 April 2009

जीवन एक पाठशाला


अपनी बातो को सर्वोच्च मान लेना आजकल सभी की आदत है, मेरे अन्दर भी होगी। मैंने कई लोगो को देखा है जो अपनी बेबुनियाद बातो को ही दुनिया का पहला और आखिरी सच समझते है। वह यह नही सोचते की उनकी सोच से ज्यादा भी कोई सोच सकता है। जब बात दुसरो की हो तो हमे उनकी इस आदत पर यकीनन हँसी आती है। लेकिन जब यही आदत हमारे किसी अपने में होती है तो हमे दुःख लगता है। की हमारे अपने में सच का सामना करने की हिम्मत ही नही है। वह अपने आप में ही बड़ा बना रहना चाहता है। और जब हम उसे समझाने की कोशिश करते है तो वह हमे ही अपना आलोचक समझ बैठता है। वह यह नही सोचता की पुरी दुनिया में से अगर कोई उसे सही और ग़लत बताने वाला है तो वह उसके अपने ही होंगे। बाहर के लोगो को उसके अच्छे या बुरे होने से क्या मतलब ? मैं मानती हु की व्यक्ति को अपनी बात का सम्मान करना आना चाहिए। क्यूंकि यदि हम स्वं ही अपनी बातो का सम्मान नही करेंगे तो , हम दुसरो से कैसे उम्मीद लगा सकते है की वह हमारी बातो का सम्मान करे। लेकिन हम अपनी ऐसी बातो पर तो दुसरो की वाहवाही नही ले सकते जो बात किसी के हित की न हो, और जिसमे अंहकार की बू आती हो। इसलिए इंसान में सिखने की परवर्ती जिंदगी भर होनी चाहिए क्यूंकि जिस दिन व्यक्ति यह सोच लेता है की मुझे सब कुछ पता है और मैं सब जानता हु, उस दिन उसका विकास होना बंद हो जाता है, क्यूंकि उस व्यक्ति ने अपने आप को पूरी तरह से पूर्ण मान लिया है। हमारा जीवन ही हमारी पाठशाला है जो कभी ख़त्म नही होती। हम रोजाना अपने जीवन से कुछ न कुछ सीखते रहे है और सीखते रहेंगे। हमे यह याद रखना चाहिए की एक भरा हुआ यानी एक फलदार वृक्ष हमे झुका हुआ होता है और एक सुखा हुआ वृक्ष जिसपर पत्ते भी नही होते वह सीधा खड़ा रहता है, अथार्थ एक ज्ञानी व्यक्ति एक फलदार वृक्ष की तरह होता है, जिसके पास उसके पूर्ण वृक्ष होने का प्रमाण है लेकिन फ़िरभी उसमे अंहकार नही है। वह झुक कर दुसरो का स्वागत करता है और सबकी पहुच तक रहता है, मैं इस ब्लॉग से ख़ुद अपनी इस आदत को ख़त्म करनी की कोशिश करुँगी। यही मेरी कोशिश है.......

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है, इसमें कोई शक नहीं कि घमंड या अंहकार एक इंसान को खा जाता है...लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर हम किसी को सम्मान नहीं देंगे तो उससे सम्मान कि कामना करना बेकार है...एक जानवर भी इंसान से प्यार चाहता है....तो फिर इंसान गरीब हो या अमीर, बड़ी जाति का हो या छोटी जाति का, गोरा हो या काला, लम्बा हो या नाता.....वो इंसान है...एक शायर ने भी क्या खूब कहा है...जो राजा है, वो भी आदमी....जो प्रजा है वो भी आदमी....मुझे तो अफ़सोस होता है उन पर जिन्हें इस बात का इल्म नहीं कि इंसानियत क्या होती है....वो तो एक ऐसी बनावती दुनिया में जीते है जहाँ उनकी बात नहीं मानने वाला उनकी नज़र में इस दुनिया के लिए बेकार होता है....हे भगवान् सब को सदबूधी दीजिये......
    संदीप

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