Friday 4 February 2011

एक लड़की की कहानी- एपिसोड -10

माँ ने दूध का गिलास मुह से लगाया था की दादी हॉस्पिटल की बातें करने लगी, एक पल के लिए तो मैं और माँ दोनों ही डर गए थे लेकिन जैसे ही दादी ने कहा की तू इतनी कमजोर है की डाक्टर साहब ने तेरा वह वाला टेस्ट ही नहीं किया जीसस यह पता चलता है की तेरे पेट में लड़का है या लड़की, यह सुनकर हम लोगो की जान में जान आई। माँ सोचने लगी की आखिर यह बात मैं कब तक छुपा कर रख सकती हूँ सच्चाई तो सामने आनी ही इसलिए क्यों न सचाई को धीरे धीरे माता जी के सामने लाया जाय। हलाकि माँ पूरी तरह से यह नहीं जानती थी की उनके पेट में लड़की ही है, लेकिन पता नहीं कैसे उन्हें मेरे होने का अहसास था। सो वह डरती थी की अगर सच में लड़की ही हुई तो क्या होगा, इसलिए वह चाहती थी की माता जी को यह बताना बहुत जरुरी है की कुछ भी हो सकता है, माँ ने धीरे से कहा की माताजी मैं भी चाहती हूँ की मेरे पेट में आपके खानदान का वारिस ही जन्म ले , लेकिन अगर लड़की हुई तो? यह सुनकर माता जी ने माँ को जोर से डाटते हुए कहा की तू पागल तो नहीं है कैसे लड़की होगी, हमारे खानदान में हर बहु के पहला बच्चा लड़का ही हुआ है तो फिर बरसो से चली आ रही यह परंपरा कैसे बदल सकती है, इसलिए तू ऐसा अशुभ बोलना तो दूर की बात सोचना भी नहीं। दादी के बात सुन कर तो माँ सन्न रह गयी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था की आखिर कैसे दादी को समझे की लड़का या लड़की पैदा करना माँ के हाथ में नहीं होता, डरते हुए फिर बोली माता जी वैसे लड़का या लड़की पैदा करना किसके हाथ में होता है, दादी ने कहा की अगर बहु घर की लक्ष्मी होती है और उसमे अच्छे संस्कार होते है तो उससे लड़का ही होता है और अगर उसने को पाप किया होता है तो उस पाप का फल के रूप में ही लड़की जन्म लेती है, तुने सुना नहीं है जब किसी के लड़की होती है तो सब यह ही कहते है की पता नहीं क्या पाप किया था जो घर में लड़की ने जन्म लिया, माँ ने धीमे आवाज में कहा की माँ लड़की को तो साक्षात् लक्ष्मी और देवी का रूप मानते है, अगर घर में लड़की आ जाय तो कहते है की घर में लड़की आ गयी, दादी ने कहा की लक्ष्मी बहुए होती है बेटी तो पराया धन होती है, इसलिए जब पराया है तो कहा अपना रहा इसलिए तुझे नहीं मालुम की बेटी होने पर पूरी बिरादरी में सर झुक जाता है उप्पर से बेटी कोई उच्च नीच कर बैठे तो समझो समाज में मुंह तक दिखाना मुश्किल हो जाता है , माँ ने कहा की माता जी उच्च नीच तो लड़के से भी हो सकती है, तो दादी झुन्झुलाते हुए बोली की लड़के के सो जुर्म भी माफ़ होते है और वैसे भी लडको को बच्चा नहीं ठहरता , बच्चा तो लड़की यह ठहरता है इसलिए अब तू ऐसे समय पर यह फ़ालतू की बातें मत सोच , तू सिर्फ आराम कर बस। यह बोलकर दादी कमरे से बाहर चली गयी और माँ फिर से बिस्तर पर लेट गयी, माँ का शरीर तो आराम कर रहा था लेकिन माँ का मन और दिमाग अभी भी इसी उलझन में था की आगे न जाने क्या होने वाला है, माँ बस चुप चाप पडी हुई थी, माँ को इतना परेशान देख कर मैं भी बहुत परेशान थी, माँ की मदद करना चाहती थी लेकिन कुछ कर नहीं पा रही थी, ....शेष अगले एपीसोड़े में

2 comments:

  1. जैसे जैसे यह कहानी आगे बढती जा रही है वैसे वैसे ये और दिलचस्प होती जा रही है...कृपया इसे यूँ ही जारी रखें...

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  2. काफी दिलचस्प कहानी है|
    आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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